मंगलवार, 26 अक्टूबर 2021

भगवद्गीता क्या है?

*भगवद्गीता क्या है ?आज हम इसके बारे में समझने की कोशिश करते हैं। मैं न तो इतनी बड़ी ज्ञानी हूं और न ही बहुत बड़ी विदुषी या पंडित जो कि भगवद्गीता क्या है इसका वर्णन कर पाऊं, लेकिन मैंने  इस्कॉन के गुरुओं  द्वारा श्रवण करके और भगवद्गीता को पढ़कर जो समझा उसे लिखकर आप सभी को बताने की कोशिश कर रही हूं।
*भगवद्गीता कोई मनगढ़ंत कहानी या घटना नहीं है बल्कि वास्तविक सत्य है।इसे भक्ति भाव से ही सही तरीके से समझा जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति भगवद्गीता के उपदेशों का पालन करे तो वह जीवन के दुखों तथा चिंताओं से मुक्त हो सकता है।
*भगवद्गीता जीवन जीने का सार है।यह महाभारत का महत्वपूर्ण अंश है। आज से 5000 वर्ष पूर्व महाभारत के
युद्धक्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से हम सभी को जीवन जीने का तरीका बताया था। इसके रचयिता महर्षि वेदव्यास हैं।
*भगवद्गीता में कुल 700 श्लोक और 18 अध्याय हैं। इसमें मुख्य चार पात्र हैं - 1. भगवान श्री कृष्ण 2. अर्जुन 3. संजय 4. धृतराष्ट्र। इसमें भगवान श्री कृष्ण के द्वारा कुल 574 श्लोक कहे गए हैं, अर्जुन के द्वारा 84 श्लोक, संजय के द्वारा 41 श्लोक और धृतराष्ट्र के द्वारा केवल एक श्लोक कहे गए हैं।
*भगवान श्री कृष्ण के पास चार गुण ऐसे हैं जो विष्णु में अनुपस्थित हैं। भगवान श्री कृष्ण को सभी अवतारों का श्रोत कहा जाता है। भगवान विष्णु को पुरुषोत्तम कहा जाता है, भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम और केवल भगवान श्री कृष्ण हैं जो पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं।
*भगवान श्री कृष्ण ही परम पुरुषोत्तम भगवान हैं। भगवान के कई अवतारों के चरण कमलों पर दो,तीन, चार या पाँच शुभ चिन्ह उपस्थित हो सकते हैं लेकिन सभी सोलह चिन्ह केवल भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों पर मौजूद हैं।
*भगवद्गीता महाभारत का अमृत है जिसे भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं अर्जुन को सुनाया है। सारे विश्व के लिए केवल एक ईश्वर हैं श्री कृष्ण केवल एक मंत्र एक प्रार्थना भगवान के नाम का कीर्तन - हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
* भगवान कृष्ण 6 विभूतियों को धारण करने वाले हैं - 
1. यश,2. संपत्ति,3. सौंदर्य,4.ज्ञान, 5. वैराग्य  , 6. बल।
मनुष्य जल से स्नान करके हमेशा अपने को स्वच्छ कर सकता है लेकिन यदि कोई भगवद्गीता रूपी पवित्र गंगा जल में एक बार भी स्नान कर ले तो पूर्ण रूप से अपने आप को स्वच्छ कर लेगा।
*अब प्रश्न उठता है कि क्या भगवद्गीता बुढ़ापे में पढ़ी जाने वाली पुस्तक है, मंदिर में रखने वाली ग्रंथ है या कि मात्र श्लोक की पुस्तक है। वास्तव में भगवद्गीता हम सबके जिंदगी जीने का सार है। इसमें अर्जुन के माध्यम से भगवान ने हम सबको जिंदगी जीने का तरीका बताया है। हमारे हरेक समस्याओं का समाधान भगवद्गीता में भगवान द्वारा बताया गया है।
*अगर हम सभी भगवद्गीता को नित्य पढ़कर और श्रेष्ठ गुरुओं द्वारा समझकर इसमें बताए गए तरीकों द्वारा अपने जीवन को जीते हैं तो हम सभी हमेशा खुश रहकर सुखी जीवन जी सकते हैं। भगवद्गीता को पढ़ने और समझने की कोई उम्र नहीं होती , अगर हम सब ये सोचते रहेंगे कि अभी तो हमारी पूरी उम्र बांकी है इसे तो हम बुढ़ापे में आराम से पढ़ेंगे। लेकिन प्रश्न उठता है कि क्या हम में से किसी को भी ये पता है कि हमारी कितनी उम्र अभी शेष बची है ?तो इसका उत्तर है नहीं ये भगवान के अलावा किसी को भी नहीं पता है कि हमारी कितनी उम्र अभी शेष बची है।
* इसका निष्कर्ष यही निकला कि भगवद्गीता को पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती।हम सभी को बचपन से ही प्रत्येक दिन भगवद्गीता के कम से कम एक  श्लोक को अवश्य पढ़नी चाहिए । हमें अपने आपको और अपना सर्वस्व भगवान श्री कृष्ण को अर्पण कर देना चाहिए।भगवान श्री कृष्ण केवल भाव के भूखे हैं और उन्हें पाने का सबसे आसान और सरल रास्ता भगवान ने भक्ति को बताया है।
*भगवान अपने भक्तों को कभी भी भवसागर में डूबने नहीं देते । अपने भक्तों की एक पुकार पर वो दौरे चले आते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण अर्जुन है जो भगवान के परम प्रिय भक्त और सखा थे । महाभारत के युद्ध में दुर्योधन ने भगवान से उनकी नारायणी सेना मांगी परंतु अर्जुन ने भगवान को मांगा और युद्ध में जीत पांडवों की हुई क्योंकि यहां तो भगवान स्वयं अर्जुन के सारथी थे।
* अतः भक्ति भाव से आप भगवान को शीघ्र पा सकते हैं  ।
भगवान अपने भक्तों को कभी भी संकट में नहीं पड़ने दे सकते हैं। वो सदैव ही अपने भक्तों के सारथी बनने
 के लिए तैयार रहते हैं बशर्ते आप भी दुर्योधन की तरह स्वार्थी नहीं बल्कि अर्जुन की तरह निःस्वार्थ भाव से भगवान को अपना सर्वस्व सौंप कर तो देखो।


Today we try to understand about what is Bhagavad Gita.  I am neither such a great scholar nor a very great scholar or pundit who can describe what Bhagavad Gita is, but I am trying to tell you all by writing what I understood by listening to the Gurus of ISKCON and reading the Bhagavad Gita.  .

 The Bhagavad Gita is not a concocted story or event, but a real truth. It can be understood correctly only with devotion.  If a person follows the teachings of the Bhagavad Gita, he can be free from the sorrows and worries of life.

 *Bhagavad Gita is the essence of living life. This is an important part of Mahabharata.  5000 years ago from the Mahabharata

 In the battlefield, Lord Shri Krishna through Arjuna told us all how to live life.  Its author is Maharishi Ved Vyas.

 There are a total of 600 verses and 18 chapters in the Bhagavad Gita.  There are four main characters in this - 1. Lord Shri Krishna 2. Arjuna 3. Sanjay 4. Dhritarashtra.  In this a total of 574 verses have been uttered by Lord Shri Krishna, 84 by Arjuna, 41 by Sanjaya and only one by Dhritarashtra.

 * Lord Shri Krishna has four such qualities which are absent in Vishnu.  Lord Shri Krishna is said to be the source of all incarnations.  Lord Vishnu is called Purushottam, Lord Rama is Maryada Purushottam and only Lord Shri Krishna is the Supreme Personality of Godhead.

 Lord Shri Krishna is the Supreme Personality of Godhead.  Two, three, four or five auspicious symbols may be present on the lotus feet of many incarnations of the Lord but all the sixteen symbols are present only on the lotus feet of Lord Shri Krishna.

 The Bhagavad Gita is the nectar of Mahabharata which Lord Krishna himself narrated to Arjuna.  There is only one God for the whole world Shri Krishna Only one mantra One prayer chanting the name of God - Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare.

 * Lord Krishna is going to wear 6 figures -

 1. Yash, 2.  property, 3.  Beauty, 4. Knowledge, 5. Vairagya, 6. Force.

 A man can always clean himself by bathing in water, but if one takes a bath even once in the holy Ganges water in the form of Bhagavad Gita, then he will completely clean himself.

 Now the question arises whether the Bhagavad Gita is a book to be read in old age, a book to be kept in the temple or is it just a book of verses.  In fact the Bhagavad Gita is the essence of life for all of us.  In this, through Arjuna, God has told all of us how to live life.  The solution to all our problems is given by the Lord in the Bhagavad Gita.

 * If we all live our life by reading Bhagvad Gita regularly and understanding it by the best gurus, then we all can live a happy life by being happy always.  There is no age to read and understand the Bhagavad Gita, if we all keep thinking that now our whole life is left, then we will read it comfortably in old age.  But the question arises that do any of us know how much age is left for us? So the answer is no, except God, no one knows how much of our age is left.

 * Its conclusion was that there is no age to read Bhagavad Gita. We all must read a verse of one chapter of Bhagavad Gita from childhood.  We should dedicate ourselves and our everything to Lord Shri Krishna. Lord Shri Krishna is only hungry for feelings and the easiest and easiest way to get them is through devotion.

 * God never allows his devotees to drown in the ocean of the ocean.  On a call from his devotees, he goes on tour.  A direct example of this is Arjuna who was the most beloved devotee and friend of the Lord.  In the war of Mahabharata, Duryodhana asked God for his Narayani army, but Arjuna asked for God and the Pandavas won the war because here the Lord himself was Arjuna's charioteer.

 Therefore, with devotion, you can find God soon.

 God can never allow his devotees to get into trouble.  He will always be the charioteer of his devotees.

 Provided that you are not selfish like Duryodhana but selflessly like Arjuna, surrendering your everything to God and see.


शनिवार, 16 अक्टूबर 2021

शाही पनीर रेसिपी रेस्टोरेंट जैसा

शाही पनीर बनाने में लगने वाली सामग्री :
1. पनीर : 400 ग्राम
2. प्याज़ : 2 बड़े साइज़ के
3. लहसुन : 8 से 9 कलियां
5. अदरक : 1 ईंच का टुकड़ा
6.टमाटर : 3
7. खसखस : 2 टेबल स्पून
8. काजू  : 8 से 9
9. बादाम : 5
10. साबुत धनिया : 2 टेबल स्पून
11. साबुत जीरा : 2 टेबल स्पून
12. लौंग : 2
13. काली मिर्च : 8 से 9 दाने
14. हरी ईलायची : 1
15. काली ईलायची  : 1
16.दालचीनी : छोटा सा टुकड़ा
18. तेजपत्ता : 2
19. कसूरी मेथी : 2 टेबल स्पून
20. हरी मिर्च : 4
21. मलाई : आधी छोटी कटोरी
22. हल्दी पाउडर : 1 टेबल स्पून
23. कश्मीरी लाल मिर्च पाउडर : 2 टेबल स्पून
24. सरसो तेल जरूरत के हिसाब से 
25. कटा हुआ हरा धनिया
26. नमक स्वादानुसार

शाही पनीर बनाने की विधि : 
* सबसे पहले पनीर को चौकोर टुकड़ों में काट कर रख ले।
* अब प्याज़ को बारीक पीस लें, अदरक लहसुन को छीलकर उसे भी पीस लें, टमाटर और हरी मिर्च को एक साथ पीस लें।
* अब सभी खड़े मसाले धनिया,जीरा, काली मिर्च, खसखस, काजू, बादाम, लौंग,ईलायची और दालचीनी सभी को एक साथ बारीक पीस लें।
* अब गैस पर एक पैन गरम करें और जैसे ही पैन गरम हो जाए तो उसमें तेल डालकर उसे गरम होने दें।
* जैसे ही तेल गरम हो जाए तो उसमें एक लौंग, एक ईलायची,एक बड़ी ईलायची, और तेजपत्ता डाल दें।
* अब अदरक लहसुन का पेस्ट डाल कर दो मिनट चला लें और फिर प्याज़ का पेस्ट डाल दें।
* प्याज़ को हल्का सुनहरा होने तक भूनें और फिर टमाटर का पेस्ट डाल दें।
* टमाटर का पेस्ट डाल कर लगभग पांच मिनट तक भूनें और फिर खड़े मसालों का पेस्ट डाल दें।
* खड़े मसालों का पेस्ट डाल कर हल्दी पाउडर और लाल मिर्च पाउडर भी डाल दें।
* अब धीमी आंच पर मसालों को  तब तक भूनें जब तक कि मसालों से तेल अलग न हो जाए।
*अब मलाई और कसूरी मेथी डालकर लगभग पांच मिनट और भूनें।
* जब सभी मसाले अच्छे से भून जाए तो करीब चार ग्लास के आस पास पानी डाल दें।
* अब स्वादानुसार नमक डालकर ग्रेवी में उबाल आने दें और जैसे ही ग्रेवी उबलने लगे तो उसमें कटा हुआ पनीर डाल कर लगभग दस मिनट तक पकने दें और फिर कटा हुआ हरा धनिया डालकर गैस को बंद कर दें।
* अगर आप इस तरह से शाही पनीर बनाएंगे तो रेस्टोरेंट जाना भूल जाएंगे । ये शाही पनीर की सब्जी रोटी, चावल, पूरी या पराठा किसी के साथ भी बहुत टेस्टी लगता है।



Ingredients to make Shahi Paneer:

 1. Paneer : 400 grams

 2. Onion : 2 big size

 3. Garlic: 8 to 9 buds

 5. Ginger : 1 inch piece

 6.Tomato : 3

 7. Poppy seeds: 2 tbsp

 8. Cashew nuts: 8 to 9

 9. Almonds : 5

 10. Whole coriander: 2 tbsp

 11. Whole cumin seeds: 2 tbsp

 12. Cloves : 2

 13. Black pepper: 8 to 9 grains

 14. Green cardamom : 1

 15. Black cardamom : 1

 16.Cinnamon : small piece

 18. Bay leaves : 2

 19. Kasoori Fenugreek : 2 tbsp

 20. Green Chillies : 4

 21. Cream : Half a small bowl

 22. Turmeric Powder: 1 tbsp

 23. Kashmiri red chili powder: 2 tbsp

 24. Mustard oil as required

 25. Chopped Coriander

 26. Salt to taste


 Method to make Shahi Paneer:

 * First of all, cut the paneer into square pieces and keep it.

 * Now grind the onion finely, peel ginger garlic and grind it too, grind tomato and green chili together.

 * Now grind all the standing spices coriander, cumin, black pepper, poppy seeds, cashew nuts, almonds, cloves, cardamom and cinnamon all together finely.

 * Now heat a pan on the gas and as soon as the pan becomes hot, add oil to it and let it heat up.

 * As soon as the oil becomes hot, put one clove, one cardamom, one big cardamom, and bay leaf in it.

 * Now add ginger garlic paste and stir for two minutes and then add onion paste.

 Fry the onion till it becomes light golden and then add tomato paste.

 * Add tomato paste and fry for about five minutes and then add the paste of spices.

 * After adding a paste of standing spices, add turmeric powder and red chili powder as well.

 * Now fry the spices on low flame till the oil separates from the spices.

 Now add cream and kasoori methi and fry for about five more minutes.

 * When all the spices are fried well, then add water around four glasses.

 * Now add salt as per taste and let the gravy come to a boil and as soon as the gravy starts boiling, add chopped cheese and let it cook for about ten minutes and then add chopped coriander leaves and switch off the gas.

 * If you make Shahi Paneer in this way, then you will forget to go to the restaurant.  This Shahi Paneer ki sabzi tastes great with roti, rice, puri or paratha.

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021

दुर्गा कवचम्

                      * अथ देव्याः कवचम्
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रम्हा ऋषिः , अनुष्टुप् छन्द: चामुण्डा देवतास्तत्त्वम् , श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोग:।
                       मार्कण्डेय उवाच
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कश्यचिदाख्यातं जन्मे ब्रूहि पितामह।।1।।
                      ब्रम्होवाच
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्व भूतोपकारकम् ।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने ।।2।।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीया ब्रम्हचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।3।।
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति च महागौरीति चाष्टमम्।।4।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता: ।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रम्हणैव महात्मना।।5।।
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ता: शरणं गता: ।।6।।
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे ।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदु:खभयं न हि ।।7।।
यैस्तु भक्तया स्मृता नूनं तेषां वृद्धि: प्रजायते ।
ये त्वाम स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशय: ।।8।।
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना ।
ऐन्द्री गज समारूढ़ा वैष्णवी गरुडासना ।।9।।
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना ।
लक्ष्मी: पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ।।10।।
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना ।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता ।।11।।
इत्येता मातर: सर्वा: सर्वयोगसमन्विता: ।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिता: ।।12।।
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्य: क्रोध समाकुला: ।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् ।।13।।
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च ।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शाङ्ग्मायुधमुत्तमम् ।।14।।
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च ।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै ।।15।।
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे ।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनी ।।16।।
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि ।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता ।।17।।
दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी ।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी ।।18।।
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी ।
ऊधर्वं ब्रम्हाणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा ।।19।।
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना ।
जया मे चाग्रत: पातु विजया पातु पृष्ठत: ।।20।।
अजिता वामपाश् र्वे तु दक्षिणे चापराजिता ।
शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूद्धिर्न व्यवस्थिता ।।21।।
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद्  यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके ।।22।।
शङखिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोतयोर्द्वारवासिनी ।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी ।।23।।
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका ।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती ।।24।।
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका ।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ।।25।।
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं में सर्वमंगला ।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी ।।26।।
नीलग्रीवा बहि: कण्ठे नलिकां नलकूबरी ।
स्कन्धयो: खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी ।।27।।
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च ।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी ।।28।।
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मन: शोकविनाशिनी ।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी ।।29।।
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा ।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ।।30।।
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विंध्यवासिनी ।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ।।31।।
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी ।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी ।।32।।
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोधर्वकेसिनी ।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा ।।33।।
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती ।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी ।।34।।
पद्मावती पद्मकोशे कफे चुडामणिस्तथा ।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु ।।35।।
शुक्रं ब्रम्हाणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा ।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ।।36।।
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम् ।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना ।।37।।
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी ।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेनारायणी सदा ।।38।।
आयु रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी ।
यश: कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी ।।39।।
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके ।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी ।।40।।
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा ।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वत: स्थिता ।।41।।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु ।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ।।42।।
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मन: ।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति ।।43।।
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजय: सार्वकामिक: ।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान् ।।44।।
निर्भयो जायते मत् र्य: संग्रामेष्वपराजित: ।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्य: कवचेनाव‌त: पुमान् ।।45।।
इदं तु देव्या: कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।
य: पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वित:।।46।।
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजिता: ।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जित: ।।47।‌।
नश्यन्ति व्याधय: सर्वे लूताविस्फोटकादय: ।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम् ।।48।।
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले ।
भूचरा: खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिका: ।।49।।
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा ।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबला: ।।50।।
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसा: ।
ब्रम्हराक्षसवेताला: कूष्माण्डा भैरवादय: ।।51।।
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते ।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम् ।।52।।
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले ।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ।।53।।
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम् ।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संतति: पुत्रपौत्रिकी ।।54।।
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम् ।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादत: ।।55।।
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते ।।ॐ।।56।।

          इति देव्या: कवचं सम्पूर्णम् ।
      
जय माता दी 🙏🙏🌺🌺❤️❤️










सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

आरती कुंज बिहारी की

*आरती कुंज बिहारी की, 
 श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
*गले में वैजन्ती माला, 
 बजावे मुरली मधुर बाला।
*श्रवण में कुण्डल झलकाला,
 नंद के आनंद नंद लाला।
*नंद के आनंद मोहन बृज चंद,
 परमा नंद राधिका रमण बिहारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण...................

*आरती कुंज बिहारी की,
 श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।1।।
*गगन सम अंग कांति काली,
  राधिका चमक रही आली।
* लतन में ठाढे वनमाली,
   भ्रमर सी अलक कस्तूरी तिलक।
* चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण............
आरती कुंज बिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण.....।।2।।
*कनक मय मोर मुकुट विलसे,
  देवता दर्शन को तरसे।
*गगन सौं सुमन राशि बरसे,
  बजे मुरचंग मधुर मिरदंग।
ग्वालिनी संग अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण............................
आरती कुंज बिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण........।।3।।
* जहां से प्रकट भई गंगा,
कलुश कलि हारिणी श्री गंगा।
स्मरण से होत मोह भंगा,
बसी शिव शीश ,जटा के बीच।
हरै अधकीच चरण छवि श्री बनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण............................।
आरती कुंज बिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण....................।।4।।
* चमकती उज्वल तट रेणु ,
    बजा रहे वृंदावन वेणु।
चहाँ दिसी गोपी ग्वाल धेनु ,
 हॅंसत मृदु मंद चांदनी चंद।
कटत भव फंद टेर सुनो दीन भिखारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण...........................।
आरती कुंज बिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण.....................।।5।।













 




, श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 6 से लिया गया श्लोक संख्या 26

यतो यतो निश्चलति मनश्चचञ्चलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।।26।। अनुवाद श्रील प्रभुपाद के द्वारा  : मन अपनी चंचलत...