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सोमवार, 2 अगस्त 2021

श्रीरुद्राष्टकम्

नमामीशमीशान  निर्वाणरूपं
           विभुं  व्यापकं  ब्रम्ह वेदस्वरूपं ।
निजं  निर्गुणं  निर्विकल्पं  निरीहं
         चिदाकाशमाकाशवासं   भजेऽहं ।।1।।
निराकारमोङ्कारमूलं   तुरीयं
          गिरा ग्यान  गोतीतमीशं  गिरीशं ।
करालं  महाकाल  कालं  कृपालं
              गुणागार  संसारपारं  नतोऽहं ।।2।।
 
तुषाराद्रि  संकाश  गौरं  गभीरं
           मनोभूत  कोटि  प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि  कल्लोलिनी  चारु  गंगा
             लसद्भालबालेन्दु  कंठे  भुजंगा ।।3।।
चलत्कुंडलं  भ्रू  सुनेत्रं  विशालं
               प्रसन्नाननं  नीलकंठं  दयालं  ।
मृगाधीशचर्माम्बरं  मुंडमालं
                   प्रियं शंकरं  सर्वनाथं  भजामि  ।।4।।
प्रचंडं  प्रकृष्टं  प्रगल्भं  परेशं
               अखंडं  अजं  भानुकोटिप्रकाशं ।
त्रयः शूल  निर्मूलनं  शूलपाणिं
            भजेऽहं  भवानीपतिं  भावगम्यं ।।5।।
कलातीत  कल्याण  कल्पान्तकारी
                सदा  सज्जनानन्ददाता  पुरारी।
चिदानन्द  संदोह  मोहापहारी
              प्रसीद  प्रसीद  प्रभो  मन्मथारी ।।6।।
न  यावद्  उमानाथ  पादारविन्दं
              भजंतीह  लोके  परे  वा  नराणाम्।
न  तावत्सुखं  शान्ति  सन्तापनाशं
                 प्रसीद  प्रभो  सर्वभूताधिवासं ।।7।।
न  जानामि  योगं  जपं  नैव  पूजां
               नतोऽहं  सदा  सर्वदा  शंभु  तुभ्यं।
जरा  जन्म  दुःखौघ  तातप्यमानं
               प्रभो  पाहि  आपन्नमामीश  शंभो ।।8।।
रुद्राष्टकमिदं  प्रोक्तं  विप्रेण  हरतोषये।
ये पठन्ति  नरा  भक्तया  तेषां  शम्भुः  प्रसीदति।।9।।
        
        ॐ नमः शिवाय 🙏🙏🌺🌺🌿🌿










, श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 6 से लिया गया श्लोक संख्या 26

यतो यतो निश्चलति मनश्चचञ्चलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।।26।। अनुवाद श्रील प्रभुपाद के द्वारा  : मन अपनी चंचलत...