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शनिवार, 31 अक्टूबर 2020

भए प्रगट कृपाला (श्री राम स्तुति) बालकाण्ड से

भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी ।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।।
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषण बनमाला नयन विशाला सोभासिंधु खरारी।।1।।




अर्थ : दीनों पर दया करने वाले, कौशल्या जी के हितकारी कृपालू प्रभू प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनन्द देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने खास आयुध धारण किए हुए थे, दिव्य आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।।1।।




कह दुइ कर जोरी स्तुति तोरी केहि बिधि करहु अनंता।
माया गुन ज्ञानातीत अमाना बेद पुरान भनंता।
करुणा सुख सागर सब गुण आगर जेहि गावहीं श्रुति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्री कंत।  ।।2।।


अर्थ : दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी हे अनंत ! मैं किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करूं। वेद और पुराण तुमको माया, गुण और ज्ञान से परे और परिणाम रहित बताते हैं। श्रुतियां और संतजन दया और सुख का समुद्र, सब गुणों का धाम कहकर जिनका गान करते हैं, वही भक्तों को प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरे कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं।।2।।




ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर ना रहै।।
उपजा जब ज्ञाना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत विधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै।।3।।

अर्थ : वेद कहते हैं कि तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्मांडो के समूह हैं। तुम मेरे गर्भ में रहे इस हँसी की बात के सुनने पर विवेकी पुरुषों की बुद्धि भी स्थिर नहीं रहती। जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुस्कुराये।वे बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। अतः उन्होंने पूर्व जन्म की सुन्दर कथा कहकर माता को समझाया, जिससे उन्हें पुत्र का वात्सल्य प्रेम प्राप्त हो।।3।।



माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै शिशुलीला अति प्रिय सीला यह सुख परम अनूपा।।
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होई बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहीं ते न परहिं भवकूपा।।4।।

अर्थ : माता की वह बुद्धि बदल गई, तब वह फिर बोली हे तात ! यह रूप छोड़कर अत्यंत प्रिय बाल लीला करो, मेरे लिए यह सुख परम अनुपम होगा। माता का यह वचन सुनकर देवताओं के स्वामी सुजान भगवान ने बालक का रूप धारण कर रोना शुरू कर दिया। तुलसी दास जी कहते हैं कि जो इस चरित्र का गान करते हैं, वे श्री हरि का पद पाते हैं और फिर संसार रूपी कूप में नहीं गिरते।।4।।




दोहा : बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
         निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार।।

अर्थ : ब्राम्हण, गौ, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया। वे माया और उसके गुण और इन्द्रियों से परे हैं। उनका दिव्य शरीर अपनी इक्षा से ही बना है।।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
सियावर रामचन्द्र जी की जय पवनसुत हनुमान जी की जय 🙏🙏🌹🌹

, श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 6 से लिया गया श्लोक संख्या 26

यतो यतो निश्चलति मनश्चचञ्चलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।।26।। अनुवाद श्रील प्रभुपाद के द्वारा  : मन अपनी चंचलत...