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बुधवार, 6 अप्रैल 2022

अथार्गलास्तोत्रम्

ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषि: , अनुष्टुप् छन्द: , श्रीमहालक्ष्मीर्देवता,श्रीजगदंबाप्रीतये सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोग: ।।
ॐ नमश्चण्डिकायै ।।
                       मार्कण्डेय उवाच
ॐ जयंती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ।।1।।
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तुते ।।2।।
मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।3।।
महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।4।।
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनी ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।5।।
शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।6।।
वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।7।।
अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।8।।
नतेभ्य: सर्वदा भक्तया चण्डिके दुरितापहे ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।9।।
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।10।।
चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।11।।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि में परमं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।12।।
विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकै: ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।13।।
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।14।।
सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।15।।
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।16।।
प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।17।।
चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरी ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।18।।
कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।19।।
हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरी ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।20।।
इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।21।।
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनी ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।22।।
देवि भक्तजनोद्यामदत्तानन्दोदयेम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।23।।
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम् ।।24।।
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः ।
स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम् ।।ॐ।।25।।
          इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
प्रेम से बोलो जय माता दी 🙏🙏🌺🌺❤️❤️
जय अम्बे मां 🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺❤️❤️❤️❤️






, श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 6 से लिया गया श्लोक संख्या 26

यतो यतो निश्चलति मनश्चचञ्चलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।।26।। अनुवाद श्रील प्रभुपाद के द्वारा  : मन अपनी चंचलत...