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सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

आरती कुंज बिहारी की

*आरती कुंज बिहारी की, 
 श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
*गले में वैजन्ती माला, 
 बजावे मुरली मधुर बाला।
*श्रवण में कुण्डल झलकाला,
 नंद के आनंद नंद लाला।
*नंद के आनंद मोहन बृज चंद,
 परमा नंद राधिका रमण बिहारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण...................

*आरती कुंज बिहारी की,
 श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।1।।
*गगन सम अंग कांति काली,
  राधिका चमक रही आली।
* लतन में ठाढे वनमाली,
   भ्रमर सी अलक कस्तूरी तिलक।
* चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण............
आरती कुंज बिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण.....।।2।।
*कनक मय मोर मुकुट विलसे,
  देवता दर्शन को तरसे।
*गगन सौं सुमन राशि बरसे,
  बजे मुरचंग मधुर मिरदंग।
ग्वालिनी संग अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण............................
आरती कुंज बिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण........।।3।।
* जहां से प्रकट भई गंगा,
कलुश कलि हारिणी श्री गंगा।
स्मरण से होत मोह भंगा,
बसी शिव शीश ,जटा के बीच।
हरै अधकीच चरण छवि श्री बनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण............................।
आरती कुंज बिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण....................।।4।।
* चमकती उज्वल तट रेणु ,
    बजा रहे वृंदावन वेणु।
चहाँ दिसी गोपी ग्वाल धेनु ,
 हॅंसत मृदु मंद चांदनी चंद।
कटत भव फंद टेर सुनो दीन भिखारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण...........................।
आरती कुंज बिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण.....................।।5।।













 




, श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 6 से लिया गया श्लोक संख्या 26

यतो यतो निश्चलति मनश्चचञ्चलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।।26।। अनुवाद श्रील प्रभुपाद के द्वारा  : मन अपनी चंचलत...