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सोमवार, 14 सितंबर 2020

हिंदी दिवस




हमारे ग्रेजुएशन का बैच:1995 से 1998 को समर्पित।

हिंदी हमारी पहचान है,
हिंदी हमारी शान है,
अपनी भाषा लुप्त नहीं हो,
कोशिश करना है ये सबको,
हिंदी हमारी शान है,
हिंदी हमारी पहचान है,
           आज भी याद आता है वो दिन,
           जब मैंने ग्रेजुएशन में रखा था हिंदी,
           मैंने ऑनर्स किया था हिंदी से,
            पतरातु का वो कॉलेज का कैंपस,
            जो चारों तरफ़ सुंदर पहाड़ों से घिरा था,
             बड़ा ही अद्भुत था वो पल,
पतरातु कॉलेज का यूनिवर्सिटी था विनोबा भावे,
जिसका रिजल्ट बड़ा ही टफ होता था,
हिंदी वालों का रिजल्ट बड़ा ख़राब आता था,
जिसके कारण कई वर्षों से हिंदी कोई रख ना रहा था,
फ़िर कई वर्षों के बाद आया हमारा बैच,
जिसमें हम बस चार जने थे,
ऊषा, ऋचा, नूतन और कालदेव
                
हमारी हिंदी की प्यारी शिक्षिका थी नीलिमा श्रीवास्तव,
उनके पढ़ाने का तरीका था बड़ा ही निराला,
जैसी प्यारी लगती थी वो वैसी ही विदुषी थी वो,
कभी वीर रस, कभी भक्ति रस,तो कभी श्रृंगार रस,
इतने गहराई से पढ़ाती कि हम सब डूब जाते थे उसमें,
एक भी क्लास हम नहीं छोड़ते चाहे कुछ भी हो जाए,
आखिर आया थर्ड ईयर जिसमें आया हमारा रिजल्ट,
कई वर्षों के बाद हिंदी का था अच्छा रिजल्ट,
       हमारी ख़ुशी का ठिकाना न रहा,
        नीलिमा मैडम भी फूले न समाई,
       हमारे बैच के बाद विद्यार्थियों का हौसला बढ़ा,
      फ़िर तो हर बार हिंदी ऑनर्स में भी काफ़ी आने लगे,
      सभी हिंदी प्रेमी आंख मूंदकर रखने लगे हिंदी को,
हिंदी का बढ़ गया डिमांड सबने किया उसका गुणगान,
काश लौट कर आता वो क्षण और हम फ़िर से वहीं होते,
लेकिन ऐसा स्वप्न में होगा क्योंकि बीत गया वो पल,
सभी दोस्त याद जब आते लगता अभी देख लूं उनको,
लेकिन मन को समझाती हूं अब नहीं मिलेंगे वो।

हिंदी हमारी शान है,
हिंदी हमारी पहचान है,
अपनी भाषा लुप्त नहीं हो,
कोशिश करना है ये सबको।
हिंदी दिवस पर मेरी ये छोटी सी कोशिश ।
आप सभी को हिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं 🙏🙏

, श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 6 से लिया गया श्लोक संख्या 26

यतो यतो निश्चलति मनश्चचञ्चलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।।26।। अनुवाद श्रील प्रभुपाद के द्वारा  : मन अपनी चंचलत...